Mock Test
Hindi (Compulsory)
हिन्दी अनिवार्य
Time Allowed: 03 Hours Maximum Marks :150
समय: 3 घंटे अधिकतम अंक:150
नोट: – (i) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
1. निम्नलिखित अवतरण का हिंदी में अनुवाद कीजिये: 30
Anthony was a very lazy boy and always used to postpone work. One day his father called him and made him understand the value of time that one should always do work on time. Anthony promised his father that he would never postpone things.
One day, he came to know that he had won the first prize in a singing competition that was held the previous month. He was asked to collect the prize the same day. He didn’t care and went to collect the prize the next day. But the prize became useless for him, as it was a ticket to a circus show, which was held the previous day.
Anthony learnt a lesson from this incident that time is valuable and work to be done on time.
अथवा
A man used to move from village to village with his team of a goat, a monkey and a snake to entertain people.
Once, while crossing a river, he balanced the snake basket on his head, sat the monkey on his shoulder and guided the goat with his hand. The level of the water was low but there flowed a strong current.
Midway, the naughty monkey opened the snake basket. The snake within the darkness of the basket sprung up with its head high. The hissing and the fury frightened the monkey and it fell into the water.
The current started dragging the monkey away. In trying to save monkey the snake basket fell into the stream.
To catch hold of the basket, he lost his grip on the goat. Within few seconds, the current carried away all three of his companions
2. निम्नलिखित गद्यांश की व्याख्या कीजिये: 15
इस कदर बढ़ती अपसंस्कृति के घनघोर अँधेरे में मानवता को राह दिखाने के लिये साहित्यिक पत्रिकाओं के जलते हुये मशाल की आवश्यकता होती है जो अंधकार में भटकते मानव को राह दिखा सके। विशाल बाँध और कारखाने निर्मित कर संसार की गहरायी नापकर, मंगल में पाँव रखकर हम विकास के डंके भले ही पीट लें, यदि आदमी को आदमी बनाने की जुगत नहीं कर सके तो वह विनाश है। बौद्धिक और भौतिकता की दानवीय शक्ति मानव को निगल जायेगी। ईट, पत्थर के भवनों में दमदमाहट लाने के लिए कितने रंग – रोगन किए जाते हैं, किन्तु हाड़ – माँस के पुतले मानव में दया, क्षमा, करूणा, ममता, समरसता और विश्वबंधुत्व का भाव संचरण करने के लिए तन्त्र भी मौन हैं। इसके लिए द् धीचि सरीखे दान और कर्ण सरीखे त्याग की आवश्यकता होती है। मानवता को यह उपहार सत्ता के आधासकों से नहीं, सच्चे साहित्य साधकों से ही लिया जा सकता है। जब इतिहास कन्दराओं में भटक जाता है, राजमार्ग रक्त स्नान में फिसल जाता है, तब साहित्यकार वीथिकाओं में कराहती मनुष्यता की बांह थाम लेता है और जिन प्रतिमाओं पर समय की धुल पड़ जाती है उसे साहित्यकार ही साफ करता है, संवारता – सजाता है और उनके गीत गाता है।
जबकि साहित्य प्रत्येक युग के लिए समान रूप से आनन्ददायक होता है और हृदय का स्पन्दन एक जैसा रहता है। उसका रहस्य यह है कि वह ह्वदय का विषय है। हमारे अंतः करण में उठाने वाली आशा और निराशा, हर्ष और विषाद, क्रोध और क्षमा, बाल्मीकि और व्यास, कालिदास और भवभूति, सूरदास और तुलसीदास, होमर और दाँते, शेक्सपीयर और गेटिल, मीर और गालिब जैसे साहित्यकारों की लोकप्रियता का कारण एक विशाल सहृदय समाज के लिए उनके साहित्य की संवेदना ही है। किसी समीक्षक ने लिखा भी है कि संसार की संवेदना ही है। किसी समीक्षक ने लिखा भी है कि संसार की किसी भी भाषा के नाटक, कालिदास के हो या शेक्सपीयर के हों, टाँलस्टाँय का कथा साहित्य हो या प्रेमचन्द्र का, साहित्य शास्त्र अभिनव गुप्त का हो या कलीराज का या रामचन्द्र शुक्ल का इनके सबसे कृतित्व के कालयजी होने का कारण है, उनका रचनात्मक प्रतिभा से सम्पन्न होना, जिसके कारण इनकी अद्भाविका क्रिया के इनकी रचनाओं में प्रभूत प्रमाण मिलते हैं, वर्तमान काल में यह सवाल अक्सर पूछा जाता है कि बढ़ते हुए संचार माध्यमों के युग में चैनलों की भरमार के इस दौर में साहित्यिक पत्रिकाओं की क्या भूमिका होगी ? वैसे भी बहुत कम लोगों की रूचि साहित्यिक पत्रिकाएं पढ़ने में है। इधर बढ़ती हुई इलैकट्राँनिक तरक्की ने इसमें और भी कमी ला दी। परिणामस्वरूप साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका पर प्रश्न चिह्न लगना स्वाभाविक है। बहुत से प्रकाशकों का यह मन बनने लगा है कि अब साहित्यिक पत्रिकांए नहीं प्रकाशित हो पायेंगी। लोगों का र्तक यह है कि चलली, फिरती तस्वीरों के आगे लिखे हुए शब्द अपनी महत्ता खो बैठे हैं। बहुत – सी पत्रिकांए, साहित्यिक पत्रिकाएं, गम्भीर लधु – पत्रिकाएं एक – एक करके बन्द हो गयी हैं। हालांकि इसके पड़ते विपरीत प्रभावों से साहित्यिक पत्रिकाओं की भूमिका सिद्ध हो जाती है। लोगों में संवेदनशीलता बढ़ रही हैं। मीडिया के लिए दुर्घटना, विपदा आदि सब सनसनी फैलाने वाला, बिकने वाला माल है, इससे अधिक कुछ नहीं। इधर कुध वर्षों से पाठकों की रूचियों के नाम पर आये साहित्य ने बरसों से साहित्यिक पत्रिकाओँ को कटा जा रहा है और देखते ही देखते वे सच्ची कथाओं वाली बाजारू साहित्य पर उतर आये हैं। यह सब बहुत चिन्ताजनक और भयावह है। पढ़े – लिखे लोग इस दौर के महत्वपूर्ण साहित्यकारों की कृतियों के बारे में छोड़िए उनके नाम तक नहीं जानते। नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह, मुक्ति बोध जैसे कवियों को भला कितने लोग जानते हैं?
अथवा
संसार में सबसे मूल्यावान वस्तु समय है क्योंकि दुनिया की अधिकांश वस्तुओं को घटाया-बढ़ाया जा सकता है, पर समय का एक क्षण भी बढ़ा पाना व्यक्ति के बस में नहीं है। समय के बीत जाने पर व्यक्ति के पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं होता। विद्यार्थी के लिए तो समय का और भी अधिक महत्त्व है। विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य है शिक्षा प्राप्त करना। समय के उपयोग से ही शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। जो विद्यार्थी अपना बहुमूल्य समय खेल-कूद, मौज-मस्ती तथा आलस्य में खो देते हैं वे जीवन भर पछताते रहते हैं, क्योंकि वे अच्छी शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं और जीवन में उन्नति नहीं कर पाते। मनुष्य का कर्तव्य है कि जो क्षण बीत गए हैं, उनकी चिंता करने के बजाय जो अब हमारे सामने हैं, उसका सदुपयोग करें।
3. निम्नलिखित कविता की व्याख्या कीजिये : 15
आज करना है जिसे, करते उसे हैं आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही ।।
मानते जी की हैं सुनते हैं, सदा सबकी कही।
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही ॥
भूलकर भी दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।
कौन ऐसा काम है, वे कर जिसे सकते नहीं॥
Or
भारत माता का मंदिर यह, समता को संवाद जहाँ।
सबका शिव कल्याण यहाँ पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।
जाति-धर्म या संप्रदाय का, नहीं भेद व्यवधान यहाँ।
सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम्मान यहाँ।
राम-रहीम, बुद्ध ईसा का, सुलभ एक-सा ध्यान यहाँ।
भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के, गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।
नहीं चाहिए बुद्धि वैर की, भला प्रेम उन्माद यहाँ।
सब तीर्थों का एक तीर्थ यह, हृदय पवित्र बना लें हम।
रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने मन के चित्र बना लें हम।
सौ-सौ आदर्शों को लेकर, एक चरित्र बना लें हम।
कोटि-कोटि कंठों से मिलकर, उठे एक जयनाद यहाँ।
सबका शिव कल्याण यहाँ है, पाएँ सभी प्रसाद यहाँ।
4. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 800 शब्दों में निबंध लिखिए: 40
क ग्रामीण विकास में महिला जनप्रतिनिधि
ख वास्तविक शिक्षा का स्वरूप
ग समाज में मीडिया की भूमिका
घ ‘न्यू इंडिया’ की संकल्पनाः चुनौतियाँ और संभावनाएँ
ङ स्वच्छ भारत अभियान
5. निम्नलिखित वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिए: 10×1=10
क मैं उपेक्षा करता हूँ कि तुम यह काम कर लोगे।
ख मैंने अपना ग्रहकार्य कर लिया है।
ग तुम हमेशा बेफ़िजूल की बातें करते हो।
घ बेटी पराए घर का धन होता है।
ङ आज तुमने नया पोशाक पहना है।
च मुझे तुम्हारा बातें सुनना पड़ा।
छ कल मैंने नया पुस्तक ख़रीदा।
ज भारत में अनेकों राज्य हैं।
झ प्रत्येक वृक्ष फल नहीं देते हैं।
ञ मैं तो आपका दर्शन करने आया हूँ।
6. निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उपयुक्त वाक्य प्रयोग कीजिए: 1+1×10=20
क अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
ख अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना
ग अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा
घ अस्सी की आमद, चौरासी खर्च
ङ ओखली में सिर दिया, तो मूसलों से क्या डर
च आँख का अन्धा नाम नयनसुख
छ आगे नाथ न पीछे पगहा
ज आप काज, महा काज
झ उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई
ञ ऊधो का लेना न माधो का देना
7. वाक्यों को उपयुक्त विराम- आदि चिन्ह लगाकर लिखिए: ½+ ½ x8=8
क लोगों ने मिस्टर शर्मा को एम पी चुन लिया
ख सुभाष चंद्र बोस ने कहा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा
ग क्या प्रधानाचार्य आज नहीं आए हैं
घ तुलसी ने रामचरित मानस में लिखा है परहित सरसि धर्म नहिं भाई
ङ तुम कौन हो कहाँ रहते हो क्या करते हो यह सब मैं क्यों पूछू
च बूढ़े ने डॉक्टर चड्ढा से कहा इसे एक नज़र देख लीजिए शायद बच जाए
छ कामायनी कवि जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कृति है
ज उस कवि सम्मेलन में रामधारी सिंह दिनकर, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे कई महान कवि आए थे
8. निम्नलिखित में से शुद्ध वर्तनी वाले शब्द छांट कर लिखिए: ½ x12=6
संसारिक, सप्ताहिक, अगामी, परिवारिक, परिक्षा, तिथी, दिवार, कवी, हानी, शक्ती, पुर्व, साधू, रुप, गुरू, क्रिपा, रितु, देनिक, वेसी, एनक, एसा, नोकरी, त्यौहार, ओरत, पड़ोस
9. निम्नलिखित शब्द युग्मों का वाक्यों प्रयोग इस प्रकार कीजिये कि उनके अलग- अलग अर्थ स्पष्ट हो जाये: ½+ ½ x6=6
क अम्बु- अम्ब
ख अली- अलि
ग ऋत- ऋतु
घ करकट- कर्कट
ङ चतुष्पद- चतुष्पथ
च चक्रवात-चक्रवाक